Grocery E-Commerce, Micro Dispute, Social Capital & State of Law in developing Countries

The future of Grocery E-Commerce legal dispute assessment, social capital significance and perception of local law practices in India.

Ratul Aich
4 min readJun 5, 2020

Abstract

Grocery E-Commerce is at a nascent stage in second-tier cities in India. The behavioral aspects of grocery E-Commerce consumers are different in mid-tier cities as compared to Metropolitan. Disputes in the local market are fought over words between the consumer and local retailers to resolve. The serious matters are further brought to resolution by the involvement of local leaders. Although on the contrary, sometimes the adulteration is executed by the involvement of local Jack in the supply chain. This is a time of growth for E-Commerce thus everything is managed routinely. When E-Commerce will start competing against one another due to saturation in the market the probability of such incidents will increase by fold. Menial disputes are resolved locally in India. This is in the best interest of the consumer and local retailer due to speedy, cost-effective, and hassle-free resolution. Locals won’t get a clue about an incident that has taken place in case of centralizing E-commerce. A dispute in the marketplace between the consumer and retail shopkeeper creates a nuisance that spreads the information like wildfire and works as a social alert system resulting in self-regulated cautionary measures by everyone in the vicinity. It means this social arrangement also works like a neighborhood watch and awareness system. Centralizing E-commerce will result in listing disputes under a single police station, preferably under the jurisdiction of the Police Station the headquarters of E-commerce is located. This will remove the impact of local presence and face-to-face negotiation. Every person is different. Some put forward better arguments than others like local leaders. A less educated and gullible person utilizes his social capital to receive help from others for dispute redressal. Centralization of E-commerce put the burden on the consumer to register and resolve as a part of self-help initiatives by calls and emails. This will gather a lot of complaints in a single Police Station. Either a well-equipped call center will resolve the dispute in a very systematic well organized manner or else in case of scarcity the disputes may not even be sorted for the hearing. Most of the Indian Government offices have to deal with a scarcity of resources. Some E-commerce uses third-party services for last-mile delivery. It is a near possibility that the small-scale E-Commerce companies spread in fewer cities don’t take the responsibility of adulteration on them but pass it to the third-party last mile services. There is a routine exchange between Technology and Sociology, and establishing equilibrium results in the longevity growth of the enterprise.

भारत में किराना ई-कॉमर्स के कानूनी विवाद आंकलन की भावी स्थिति, सामाजिक पूंजी की एहमियत और ज्ञप्ति स्थानीय न्याय वयवस्था।

सामान्य सारांश

किराना इ-कॉमर्स भारत के मध्यवर्ती शहरों में अभी भी नया है। हमे ये जानना जरूरी है की महानगरों के अपेक्षा में मध्यवर्ती नगरों में किराने खरीदारों के तौर तरीके अलग है। स्तानीय बाजार के किराने की दुकानों में जो भी मतभेद होता है उसे छोटे शहरों में लोग दुकान में जाकर मैं मैं तू तू करके मामले का निपटारा कर लेते है। मामला थोड़ा गंभीर हो तो स्थानीय लीडर के हस्तक्षेप से मामले का निवारण करते है। इसके ही ठीक विपरीत, ये भी समस्या है की कभी कभी आपूर्ति श्रृंखला में स्थानीय जैक के द्वारा ही मिलावट के दो नम्बरी कामो को अंजाम दिया जाता है। अभी इ-कॉमर्स के वृद्धि चरण का दौर है इसलिए सब कुछ नियमित तरीके से चल राहा है। जब परिपूर्णता के कारन एक इ-कॉमर्स का दूसरे इ-कॉमर्स के बीच प्रतिस्पर्धा सुरु होगी तो उच नीच होने की सम्भावनाये भी बढ़ जाएगी। भारत में छोटे मोठे मामलों को निपटारा स्थानीय ही हो जाता है। यह उपभोक्ता और दुकानदार दोनों के हित में होता है क्योकि मामले तेजी से निपटा दिए जाते है। अब इ-कॉमर्स के केंद्रीकृत हो जाने से किसी भी मामले के बारे में स्थानीय लोगो को पहले की तरह भनक नहीं लगेगी। जब बाजार में उपभोक्ता और दुकानदार के बीच कोई मतभेद होता है तो होर हल्ला के कारन बाजार में और आस पास के इलाको में बाते फ़ैल जाती है, जिससे सब सावधानी बरतने लगते थे। मतलब यह सामाजिक व्यवस्था एक अड़ोस-पड़ोस संकेत व सचेत घोषणा प्रणाली के तरह भी काम करती है। इ-कॉमर्स के केंद्रीकृत होने के कारन बोहोत सारे शिकायते एक ही थाने के अंतर्गत भेजी जाएगी, जिस थाने के अधिकार क्षेत्र के तहत इ-कॉमर्स का मुख्यालय स्थित है। इससे स्थानीय उपस्थिति और रू-बरू होकर बात करने का तात्पर्य ख़तम हो जाएगा। सब इंसान एक समान नहीं होते है। कुछ कि तर्क छमता दूसरो से बेहतर होती है। जैसे की स्थानीय लीडर। इसीलिए कम पड़ा लिखा और भोला भाला इंसान अपने सामाजिक पूंजी का प्रयोग कर दूसरो की मदद के कारन इन कठनाईओ से निवारण पाता है। परन्तु इ-कॉमर्स के केंद्रकृत होने से अब उपभोग्ता को ये सब खुद ही करना है, ईमेल व फ़ोन कॉल के जरिये। एक ही थाने के अंतर्गत बोहोत सारी शिकायत जाने से उस थाने में जमावड़ा बढ़ेगा। या तो साधन-सम्पन्न कॉल सेण्टर के द्वारा इन मामलों का निपटारा अच्छे प्रकार से होगा या तो अभाव के कारन बोहोत से मामले कभी सुलझाने के लिए चुने भी नहीं जायेंगे। भारत के अधिकतर सरकारी कार्यालयों में अभाव देखा गया है। इनमे से कुछ इ-कॉमर्स अंतिम मील की दुरी तृतीय पक्ष से करवाती है। ऐसा भी हो सकता है की ये कुछ शहरों में सिमटी हुई इ-कॉमर्स कम्पनिया तृतीय पक्ष के द्वारा मॉल वितरण के समय उससे छेड़ छार व मिलावट का दायित्व अपने ऊपर ना ले। प्रौद्योगिकी और समाजशास्त्र में निरंतर आदान प्रदान बना रहता है और इनमे संतुलन स्थापित करने से उद्योग में दीर्घावधि विकास होता है।

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Ratul Aich
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Written by Ratul Aich

UX Principal Consultant, BSc Viscom, Diploma Animation. Disruptive blogging, Erotica, Drama, Slice of Life Film Screenwriting. https://LinkedIn.com/in/ratulaich